Saturday, 31 December 2016
Sunday, 6 November 2016
india was how many riyaste
भारत की एकता का इतिहास[संपादित करें]
परिचय[संपादित करें]
सन् 1947 में स्वतंत्र होने के बाद भारत स्वतंत्र रियासतों में बंटा हुआ था। 15 अगस्त 1947 की तारीख लार्ड लुई माउण्टबैटन ने जानबूझ कर तय की थी क्योंकि ये द्वितीय विश्व युद्ध में जापान द्वारा समर्पण करने की दूसरी वर्षगांठ थी। 15 अगस्त 1945 को जापान आत्म समर्पण कर दिया था, तब माउण्टबैटन सेना के साथ बर्मा के जंगलों में थे। इसी वर्षगांठ को यादगार बनाने के लिए माउण्टबैटन ने 15 अगस्त 1947 को भारत की आजादी के लिए तय किया था। किन्तु भोपाल के लोगों को भारत संघ का हिस्सा बनने के लिए बाद में दो साल और इंतजार करना पड़ा था। तब सरदार पटेल ने कोई ६०० देशी रियासतों को भारत में मिलाकर भारत को एक सूत्र में बांधा और भारत को मौजूदा स्वरूप दिया। एक कुशल प्रशासक होने के कारण कृतज्ञ राष्ट्र उन्हें ’लौह पुरुष‘ के रूप में भी याद करता है।[1]
आजादी प्राप्ति के दौरान भारत में करीब 662 देशी रियासतें थीं। सरदार पटेल तब अंतरिम सरकार में उपप्रधानमंत्री के साथ देश के गृहमंत्री थे।जूनागढ, हैदराबाद और कश्मीर को छोडक़र 552 रियासतों ने स्वेज्छा से भारतीय परिसंघ में शामिल होने की स्वीकृति दी थी।
वास्तव में, माउण्टबैटन ने जो प्रस्ताव भारत की आजादी को लेकर जवाहरलाल नेहरू के सामने रखा था उसमें ये प्रावधान था कि भारत के 565 रजवाड़े भारत या पाकिस्तान में किसी एक में विलय को चुनेंगे और वे चाहें तो दोनों के साथ न जाकर अपने को स्वतंत्र भी रख सकेंगे। इन 565 रजवाड़ों जिनमें से अधिकांश प्रिंसली स्टेट (ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य का हिस्सा) थे में से भारत के हिस्से में आए रजवाड़ों ने एक-एक करके विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए, या यूँ कह सकते हैं कि सरदार वल्लभ भाई पटेल तथा वीपी मेनन ने हस्ताक्षर करवा लिए।
बचे रह गए थे - हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर और भोपाल। इनमें से भोपाल का विलय सबसे अंत में भारत में हुआ। भारत संघ में शामिल होने वाली अंतिम रियासत भोपाल इसलिए थी क्योंकि पटेल और मेनन को पता था कि भोपाल को अंतत: मिलना ही होगा। जूनागढ़ पाकिस्तान में मिलने की घोषणा कर चुका था तो काश्मीर स्वतंत्र बने रहने की। जूनागढ़, काश्मीर तथा हैदराबाद तीनों राज्यों को सेना की मदद से विलय करवाया गया किन्तु भोपाल में इसकी आवश्यकता नहीं पड़ी।
भोपाल जहां नवाब हमीदुल्लाह खान उस रियासत के नवाब थे जो भोपाल, सीहोर और रायसेन तक फैली हुई थी। इस रियासत की स्थापना 1723-24 में औरंगजेब की सेना के बहादुर अफगान योद्धा दोस्त मोहम्मद खान ने सीहोर, आष्टा, खिलचीपुर और गिन्नौर को जीत कर स्थापित की थी। 1728 में दोस्त मोहम्मद खान की मृत्यु के बाद उसके बेटे यार मोहम्मद खान के रूप में भोपाल रियासत को अपना पहला नवाब मिला था।
मार्च 1818 में जब नजर मोहम्मद खान नवाब थे तो एंग्लो भोपाल संधि के तहत भोपाल रियासत भारतीय ब्रिटिश साम्राज्य की प्रिंसली स्टेट हो गई। 1926 में उसी रियासत के नवाब बने थे हमीदुल्लाह खान। अलीगढ़ विश्वविद्यालय से शिक्षित नवाब हमीदुल्लाह दो बार 1931 और 1944 में चेम्बर ऑफ प्रिंसेस के चांसलर बने तथा भारत विभाजन के समय वे ही चांसलर थे। आजादी का मसौदा घोषित होने के साथ ही उन्होंने 1947 में चांसलर पद से त्यागपत्र दे दिया था, क्योंकि वे रजवाड़ों की स्वतंत्रता के पक्षधर थे।
नवाब हमीदुल्लाह 14 अगस्त 1947 तक ऊहापोह में थे कि वो क्या निर्णय लें। जिन्ना उन्हें पाकिस्तान में सेक्रेटरी जनरल का पद देकर वहाँ आने की पेशकश दे चुके थे और इधर रियासत का मोह था। 13 अगस्त को उन्होंने अपनी बेटी आबिदा को भोपाल रियासत का शासक बन जाने को कहा ताकि वे पाकिस्तान जाकर सेक्रेटरी जनरल का पद सभाल सकें, किन्तु आबिदा ने इससे इनकार कर दिया।
भोपाल का विलीनीकरण सबसे अंत में हुआ तो उसके पीछे एक कारण ये भी था कि नवाब हमीदुल्लाह जो चेम्बर ऑफ प्रिंसेस के चांसलर थे उनका देश की आंतरिक राजनीति में बहुत दखल था, वे नेहरू और जिन्ना दोनों के घनिष्ठ मित्र थे।
मार्च 1948 में नवाब हमीदुल्लाह ने भोपाल के स्वतंत्र रहने की घोषणा की। मई 1948 में नवाब ने भोपाल सरकार का एक मंत्रीमंडल घोषित कर दिया था जिसके प्रधानमंत्री चतुरनारायण मालवीय थे। इस समय तक आते-आते भोपाल रियासत में विलीनीकरण को लेकर विद्रोह पनपने लगा था। साथ ही विलीनीकरण की सूत्रधार पटेल-मेनन की जोड़ी भी दबाव बनाने लगी थी।
एक और समस्या ये सामने आ गई थी कि चतुर नारायण मालवीय भी विलीनीकरण के पक्ष में हो चुके थे। प्रजामंडल विलीनीकरण आंदोलन का प्रमुख दल बन चुका था। अक्टूबर 1948 में नवाब हज पर चले गये और दिसम्बर 1948 में भोपाल के इतिहास का जबरदस्त प्रदर्शन विलीनीकरण को लेकर हुआ, कई प्रदर्शनकारी गिरफ्तार किए गए जिनमें ठाकुर लाल सिंह, डॉ शंकर दयाल शर्मा, भैंरो प्रसाद और उद्धवदास मेहता जैसे नाम भी शामिल थे। पूरा भोपाल बंद था, राज्य की पुलिस आंदोलनकारियों पर पानी फेंक कर उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश कर रही थी।
23 जनवरी 1949 को डॉ॰ शंकर दयाल शर्मा को आठ माह के लिए जेल भेज दिया गया। इन सबके बीच वीपी मेनन एक बार फिर से भोपाल आए मेनन ने नवाब को स्पष्ट शब्दों में कहा कि भोपाल स्वतंत्र नहीं रह सकता, भौगोलिक, नैतिक और सांस्कृतिक नजर से देखें तो भोपाल मालवा के ज्यादा करीब है इसलिए भोपाल को मध्यभारत का हिस्सा बनना ही होगा। आखिरकार 29 जनवरी 1949 को नवाब ने मंत्रिमंडल को बर्खास्त करते हुए सत्ता के सारे सूत्र एक बार फिर से अपने हाथ में ले लिए। पंडित चतुरनारायण मालवीय इक्कीस दिन के उपवास पर बैठ चुके थे।
वीपी मेनन पूरे घटनाक्रम को भोपाल में ही रहकर देख रहे थे, वे लाल कोठी (वर्तमान राजभवन) में रुके हुए थे तथा लगतार दबाव बनाए हुए थे नवाब पर। और अंतत: 30 अप्रैल 1949 को नवाब ने विलीनीकरण के पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। सरदार पटेल ने नवाब को लिखे पत्र में कहा -मेरे लिए ये एक बड़ी निराशाजनक और दुख की बात थी कि आपके अविवादित हुनर तथा क्षमताओं को आपने देश के उपयोग में उस समय नहीं आने दिया जब देश को उसकी जरूरत थी।
अंतत: 1 जून 1949 को भोपाल रियासत, भारत का हिस्सा बन गई, केंद्र द्वारा नियुक्त चीफ कमिश्नर श्री एनबी बैनर्जी ने कार्यभार संभाल लिया और नवाब को मिला 11 लाख सालाना का प्रिवीपर्स। भोपाल का विलीनीकरण हो चुका था। लगभग 225 साल पुराने (1724 से 1949) नवाबी शासन का प्रतीक रहा तिरंगा (काला, सफेद, हरा) लाल कोठी से उतारा जा रहा था और भारत संघ का तिरंगा (केसरिया, सफेद, हरा) चढ़ाया जा रहा था।
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
india of old history infomatio
janiye bhart ki birtis riyasto ke bare me
ब्रिटिशकालीन भारत की रियासतें
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सन १९१९ में भारतीय उपमहाद्वीप की मानचित्र। ब्रितिश साशित क्षेत्र व स्वतन्त्र रियासतों के क्षेत्रों को दरशाया गया है
सन १९४७ में आज़ादी व विभाजन से पहले भारतवर्ष में ब्रिटिश साशित क्षेत्र के अलावा भी छोटे-बड़े कुल ५६२ स्वतन्त्र रियासत हुआ करते थे जो ब्रिटिश भारत का हिस्सा नहीं थे। ये रियासतें भारतीय उपमहाद्वीप के वो क्षेत्र थे जीन पर अंग्रेज़ों ने क़बज़ा नहीं किया था। ये रजवाड़े संधी द्वारा ब्रिटिश हुक़ूमत के प्रभुत्व के अधीन थे। ईन संधियों के शर्त हर राज्य के लिये भिन्न थे परन्तू मूल रूप से हर संधी के तहत रियासतों को विदेश मामले, अन्य रेज्यों से रिशते व समझौते और सेना व सुरक्षा से संबंधित विशयों की स्वतन्त्र इजाज़त नहीं थी, इन विशयों का प्रभार अंग्रेजी हुक़ूमत पर था और बदले में ब्रिटिश सरकार साशकों को स्वतन्त्र रूप से साशन करने की अनुमती देती थी।
सन १९४७ में भारत की आज़ादी व विभाजन के पश्चात सिक्किम क अलावा अन्य सभी राज्य या तो भारत या पाकिस्तान अधिराज्यों में से किसी एक में शामिल हो गए या उन्हें कब्ज़ा कर लिया गया। नव स्वतंत्र भारत में ब्रिटिश भारत की एजेंसियों को " दूसरी श्रेणी " के राज्यों का दर्जा दिया गया(उदाहरणस्वरूप: "सेंट्रल इण्डिया एजेंसी" बन गया "मध्य भारत राज्य")। इन राज्यों के मुखिया को राज्यपाल नहीं राजप्रमुख कहा जाता था। १९५६ तक "राज्य पुनर-गठन अयोग" के सुझाव पर अमल करते हुए भारत सरकार ने राज्यों को पुनर गठित कर मौजूदा स्थिती में लाया। परिणामस्वरूप सारी रियासतों को स्वतंत्र भारत के राज्यों में विलीन कर लिया गया। इस तरह रियासतों का अंत हा गया।
सन १९६२ में प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के साशनकाल के दौरान इन रियासतों के साशको के निजी कोशों को एवं अन्य सभी ग़ैर-लोकतान्त्रिक रियायतों को भी रद्ध कर दिया गया
ब्रिटिश भारत में रियासतें |
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व्यक्तिगत रेसिडेंसी |
अभिकरण |
सूचियां |
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अनुक्रम
[छुपाएँ]- 1परिचय
- 2१९४७ में आज़ादी के समय के सियासतों की सूची
- 2.1व्यक्तिगत रेसिडेंसीयों की सूचि
- 2.2बलूचिस्तान एजेंसी
- 2.3काठीयाव़ाड एजेंसी
- 2.4डेक्कन राज्य एजेंसी एवं कोल्हापुर रेसिडेंसी
- 2.5ग्वालियर रेसिडेंसी
- 2.6मद्रास प्रेसिडेंसी की रियासतें
- 2.7उत्तर-पष्चिमी सीमांत राज्य एजेंसी के राज्य
- 2.8गिलगित एजेंसी के राज्य
- 2.9सिंध प्रांत के राज्य
- 2.10पंजाबी राज्य एजेंसी
- 2.11राजपूताना एजेंसी
- 2.12गुजराती राज्य एजेंसी एवं बरोडा रेसिडेंसी
- 2.13मध्य भारत एजेंसी के राज्यों की सूचि
- 2.14पूर्वी राज्य एजेंसी के राज्यों की वर्गित सूचि
- 3भारत के वो राज्य जिन्हें ब्रिटिश राज ने पूरी तरह क़ब्ज़ा कर लिया था
- 4इन्हें भी देखें
- 5बाहरी कड़ियाँ
- 6संदर्भ
परिचय[संपादित करें]
मुख्य लेख : ब्रिटिश भारत में रियासतें

नरेन्द्र मंडल की एक बैठक की तसवीर, सन १९४०
सन १८५७ तक, भारतवर्ष के सारे बड़े व शक्तिशाली साम्राज्यों और रियासतों(मुग़ल साम्राज्य, मराठा साम्राज्य, अवध, मैसूर, सिख साम्राज्य आदि) को अंग्रेज़ों ने युद्ध या कूटनीती से पस्त कर दिया था और भारतीय उपमहाद्वीप के ज़्यादातर हिस्सों पर अधिकार जमा लिया था। इस्के अलावा उन्होंने फ़्रान्सिसी और पुर्तगाली ईस्ट इण्डिया कंपनीयों को भी हरा कर उनका भी भारत में विस्तार रोक दिया था। १९वीं सदी के मध्य तक ब्रिटिश साम्राज्य ने भारतीय उपमहाद्वीप मैं अपनी प्रभुता व नायकत्वता(अंग्रेज़ी: hegemony) स्थापित कर ली थी और भारत में ख़ुद को एकमात्र नायक के रुप मैं स्थापिन कर लिया था। १८५७ के संग्राम के बाद अगस्त १८५८ केइलाहाबाद घोषणा के बाद ब्रिटिश सरकार ने विस्तारवादी नीती छोड़ दी और रियासतों से अब तक हुई संधि के तहत रियासतों से रिश्तों को आगे बढ़ाने की घोषणा की। रियासतों से हुए सहायक संधियों के तहत राज्यों पर ब्रिटिश ताज अधिपत्य था और राज्यों के विदेशी मामलों और सुरक्षा के लिये ज़िम्मेदार था। संधि द्वारा रियासत के शासकों को क्षेत्रिय स्वायत्तता (राजकीय शासन संभालने की स्वतन्त्रता) परन्तु यह स्वायत्तता केवल सैद्धान्तिक थी, वास्तव में रजवाड़ों के आंतरिक मामलों में ब्रिटिशों का काफ़ी प्रभाव व हस्तक्षेप था।
ब्रिटिश सरकार हर राज्य के लिये एक स्थायी अफ़सर नियुक्त करती थी जिसे रेसीडेंट(अंग्रेज़ी: Resident) कहा जाता था। "रेसिडेंट " एक राजनयिक पद्धती थी जो रजवाड़ों में ब्रिटिश सरकार के दूतों को दिया जाता था। रेसिडेंट ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त किये गए सलाहकार थे जिनका काम था रियासतों में ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधितव करना और शासकों के सामने ब्रिटिश हितों को रखना। १९४७ तक केवल चार राज्यों, जो सबसे विशाल और महत्वपूर्ण थे, में रेसिडेंट बचे थे जबकी अन्य सभी छोटे राज्यों समूहों में वर्गीकृत कर दिया गया। इन समूहों को "एजेंसी" कहा जाता था जेसे की "राजपूताना एजेंसी", "सेंट्रल इण्डिया एजेंसी" और "बलूचिस्तान एजेंसी"। महत्वपूर्ण राजायों को सलामी राज्य का दरजा दिया जाता था।
१९२० में रियासतों का प्रतिनिधात्व करने के लिये "नरेन्द्र मंडल" की स्थापना की गई जो साशकों के लिये ब्रिटिश सरकार से अपनी आशाओं और आकांशाओं को प्रस्तुत करने का एक मंच था। इस्की बैठक "संसद भवन" के सेंट्रल हाॅल में होती थी। इसे १९४७ में विस्थापित कर दिया गया।
१९४७ में भारत की आज़ादी के समय अंग्रेज़ सरकार ने "इण्डियन इन्डिपेंडेंस ऐक्ट" के तहत सभी रियासतों को ३ विकल्पों के साथ छोड़ा था भारत या पाकिस्तान में विलय या स्वतन्त्र रहना। अधिकतर राज्यों ने भारत या पाकिस्तान में विलय को स्वीकार कर लिया सिवाए हैदराबाद, जुनागढ़, जम्मू-कश्मीर, बिलासपुर, भोपाल और त्रावणकोर के जिन्होंने पहले आज़ाद रहने का फ़ैसला लिया था। पर बाद में इन सभी राज्यों को भारत या पाकिस्तान में मिला लिया गया। नव स्वतंत्र भारत में एजेंसियों को " भाग-B " के राज्यों का दर्जा दिया गया (उदाहरणस्वरूप: "सेंट्रल इण्डिया एजेंसी" बन गया "मध्य भारत राज्य")। इन राज्यों के मुखिया कोराज्यपाल नहीं राजप्रमुख कहा जाता था। १९६२ तक "राज्य पुनर्गठन अयोग" के सुझाव पर अमल करते हुए भारत सरकार ने राज्यों को पुनर्गठित कर मौजूदा स्थिति में लाया। परिणामस्वरूप सारी रियासतों को स्वतंत्र भारत के राज्यों में विलीन कर लिया गया। इस तरह रियासतों का अंत हा गया।
अंतिम बचा राज्य सिक्किम को भी १६ मई १९७५ में जनमत-संग्रह के पश्चात भारत में शामिल कर लिया गया था, जिसमें सिक्किम के लोगों ने भारी मतों से इस्के लिये वोट दिया।
१९४७ में आज़ादी के समय के सियासतों की सूची[संपादित करें]
व्यक्तिगत रेसिडेंसीयों की सूचि[संपादित करें]
रियासत का नाम | रेसिडेंट | वर्तमान देशों का भाग | अंतिम साशक |
---|---|---|---|
![]() | रेसिडेंसी | ![]() | उस्मान अलि ख़ान, असफ़ जाह अष्टम |
![]() | रेसिडेंसी | ![]() | सिपार-ए-सल्तनत, जम्मू और कश्मीर के महारज, श्रीमान राजराजेश्वर महाराजाधिराज श्री सर हरी संह इंदर महिंदर बहादुर |
![]() | रेसिडेंसी | ![]() | श्री जयचामराजेंद्र वादियार |
![]() | रेसिडेंट | ![]() | चोग्याल वांग्चूक् नामग्याल |
![]() | मद्रास प्रेसिडेंसी के अंतरगत स्थाई रेसिडेंट | ![]() | त्रावणकोर के महाराज, श्री पद्मनाभ दास श्री चित्थिरा थिरुनाल बलराम वर्मा वंचि पाल महाराज मारतंड वर्मा पंचम, श्री उथ्रडोम थिरुनाल कुलशेखरा कीर्तिपती मन्नेय सुल्तान महाराज राजा रामराज बहादुर शमशेर जंग |
बलूचिस्तान एजेंसी[संपादित करें]
रियासत का नाम | राज्य का पद | वर्तमान देशों का भाग | अंतिम साशक |
---|---|---|---|
![]() | रजवाड़ा | ![]() | ख़ान-ए-कलात, बग़लर बेग़ी मीर आग़ा सुलैमान जान |
![]() | रजवाड़ा | ![]() | हबीबुल्लाह ख़ान |
![]() | रजवाड़ा | ![]() | लाॅस बुला के आमिर और जाम, मीर मुहम्मद यूसुफ़ ख़ान |
![]() | रजवाड़ा | ![]() | बाई ख़ान बलोच गिकची |
काठीयाव़ाड एजेंसी[संपादित करें]
[2] काठीयाव़ाड एजेंसी की रियासते ।
रियासत का नाम | राज्य का पद | वर्तमान देश का भाग | अंतिम शाशक |
---|---|---|---|
![]() | रज़वाडा | काठीयाव़ाड,भारत ![]() | ठाकोर साहेब श्री श्री चंद्रसिंहजी जाडेजा |
![]() | रज़वाडा | काठीयाव़ाड,भारत ![]() | जाम साहेब श्री श्री शत्रुशैल्यसिंहजी जाडेजा |
![]() | रज़वाडा | काठीयाव़ाड,भारत ![]() | ठाकोर साहेब श्री प्रद्युमनसिंहजी जाडेजा |
![]() | रज़वाडा | काठीयाव़ाड,भारत![]() | ठाकोर साहेब श्री भगवतसिंहजी जाडेजा |
![]() | रज़वाडा | काठीयाव़ाड,भारत ![]() | ठाकोर साहेब श्री लगधीरसिंहजी जाडेजा |
![]() | राज्य भायाती गांव | काठीयाव़ाड,भारत ![]() | ध्रोल राज्य |
डेक्कन राज्य एजेंसी एवं कोल्हापुर रेसिडेंसी[संपादित करें]
नाम | एजेंसी/रेसिडेंसी | मौजूदा हिस्सा | अंतिम साशक |
---|---|---|---|
![]() | रियासत | ![]() | अक्कालकोट की रानी साहेब, श्रीमंत रानी सुमित्रा बाई राजे भोंसले |
![]() | रियासत | ![]() | औंध के पंत प्रतिनिधी, मैहरबां श्रीमंत भगवंतराव श्रीपतराव |
![]() | रियासत | ![]() | राजा श्रीमंत सर रघुताथराव शंकर्राव बाबासाहब पंडित पंत सचिव |
![]() | रियासत | ![]() | राजा साहेब श्रेमंत राजा राजाप्रणै राव परषुरामराव पटवरधन |
![]() | रियासत | ![]() | जंजिरा के नवाब, सिदि मुहम्मद ख़ान (द्वितीय) |
![]() | रियासत | ![]() | ल्यूटेनेन्ट श्रीमंत राजा विजयसिंहराव रामराव बाबासाहेब दाफ़ले |
![]() | रियासत | ![]() | कोल्हापुर के महाराज, छत्रपती महाराज साहब बहादुर श्रीमंत राजश्री शाहु (द्वितीय) भोंसले |
![]() | रियासत | ![]() | कुरुन्दवाद वरिष्ठ के राजा श्रीमंत भालचंद्रराव चिंतामनराव पटवर्धन |
![]() | रियासत | ![]() | कुरुन्दवाद कनिष्ठ के राजा, राजा श्रीमंत हरिहर्राव रघुनाथराव पटवर्धन |
![]() | रियासत | ![]() | श्रीमंत राजा भैरवसिंहराव मलोजीराव घोरपडे (द्वितीय) |
![]() | रियासत | ![]() | मेजर राजा बहादुर श्रीमंत राम राजे नाइक निम्बलकर |
![]() | रियासत | ![]() | कैप्टन श्रीमंत राजा साहेब सर चिंतामनराव (द्वितीय) धूंदिडिराजराव अप्पासाहेब पटवरधन |
![]() | रियासत | ![]() | सवानुर के नवाब, अब्दुल माजिद ख़ान (द्वितीय) |
![]() | रियासत | ![]() | भोंसले कुल |
ग्वालियर रेसिडेंसी[संपादित करें]
ग्वालियर रेसिडेंसी के राज्यों की सूचि।
राज्य का नाम | एजेंसी/रेसिडेंट | वर्तमान भाग | अंतिम साशक |
---|---|---|---|
![]() | रियासत | ![]() | महाराज जिवाजी राव सिंधिया |
![]() | रियासत | ![]() | |
![]() | रियासत | ![]() | |
![]() | रियासत | ![]() | दीवान महादेव मिश्रा[3] |
![]() | रियासत | ![]() | महारानी सुशीला सिन्हा रुद्राणी |
![]() | रियासत | ![]() | रामपुर के नवाब, नवाब सईयद मुहम्मद क़ाज़ीम 'अलि ख़ान बहादुर |
मद्रास प्रेसिडेंसी की रियासतें[संपादित करें]
रियासत
का नाम
| राज्य का पद | वर्तमान देशों
का भाग
| अंतिम साशक |
---|---|---|---|
![]() | रियासत | ![]() | बनगानपल्ली के नवाब, नवाब सईयद फ़ज़ल्-ए-अलि ख़ान चतुर्थ बहादुर |
![]() | रियासत | केरल, भारत | केरल वर्मा |
![]() | रियासत | ![]() | पुदुकोट्टई के महाराज, राजागोपाल तोंडईमान |
![]() | रियासत | ![]() | संदूर के राजा, हिन्दुराव, मम्लुक्तमदार सेनापति, श्रीमंत महाराज श्री मुरर्राव यश्वंतराव घोरपडे |
उत्तर-पष्चिमी सीमांत राज्य एजेंसी के राज्य[संपादित करें]
राज्य का नाम | पद/वर्गिकरण | वर्तमान भाग | अंतिम साशक |
---|---|---|---|
![]() | रियासत. | ![]() | नवाब मुहम्मद सईद ख़ान |
![]() | रियासत | ![]() | मेहतार सैफ़-उल्-मुक़ नसिर |
![]() | रियासत | ![]() | मुहम्मद शाह खोसरू ख़ान |
![]() | रियासत रियासत | ![]() | ख़ान अटा मुहम्मद ख़ान |
![]() | रियासत | ![]() | मियांगुल अब्दुल्-हक़ जहांज़ीब |
गिलगित एजेंसी के राज्य[संपादित करें]
हुंज़ा और नगर रियासतों समेत गिलगित एजेंसी के कई जागीर जम्मू और कश्मीर के महाराज के आधीन थे।
रियासत का नाम | रियासत के समूह का नाम | वर्तमान देशों का भाग | अंतिम साशक |
---|---|---|---|
![]() | गिलगित एजेंसी | ![]() | मौहम्मद जमाल ख़ान |
![]() | गिलगित एजेंसी | ![]() | शौक़त अली ख़ान |
सिंध प्रांत के राज्य[संपादित करें]
रियासत का नाम | रायासत का पद | वर्तमान देशों का भाग | अंतिम साशक |
---|---|---|---|
![]() | रियासत | ![]() | ज्यौर्ज अलि मुरद ख़ान |
पंजाबी राज्य एजेंसी[संपादित करें]
राजपूताना एजेंसी[संपादित करें]
राजपूताना एजेंसी के राज्यों की सूचि।
नाम | रेसिडेंट या एजेंट | वर्तमान भाग | अंतिम साशक |
---|---|---|---|
![]() | रियासत | ![]() | अलवर के महाराज, राज ऋषी श्री सवाई महाराज जीतेंद्र प्रताप सिंहजी वीरेंद्र शिरोमणीं देव भरत प्रभाकर बहादुर जीतेंद्र सिंह |
![]() | रियासत | ![]() | बाँसवाड़ा के महारावल, राज रयान महिमेंद्र महाराजाधिराज महारावलजी साहब श्री जगमालजी (द्वितीय) बहादुर, नरेश राज्य |
![]() | रियासत | ![]() | महाराजा ब्रजेंद्र सिंह |
![]() | रियासत | ![]() | बीकानेर के महाराज एवं बीकानेर के शाही घराने के मुखिया, श्री राज राजेश्वर महाराजाधिराज नरेंद्र सवाई महाराज शिरोमणीं रवि राज सिंहजी बहादुर |
![]() | रियासत | ![]() | कर्नल महाराव राजा श्री बहादुर सिंहजी बहादुर |
![]() | रियासत | ![]() | धौलपुर के महाराज राणा, महामहिं महाराजाधिराज श्री सवाई महाराज राणा श्री हेमन्त सिंह, लोकेन्द्र बहादुर, दिलेर जंग जय देव |
![]() | रियासत | ![]() | डुंगरपुर के महारावल, राय-ए-रय़ान, महिमहेंद्र, महाराजाधिराज महारावल श्री महिपाल सिंहजी (द्वितीय) साहिब बहादुर |
![]() | रियासत | ![]() | महामहिं सारामद-ए-राजाहई हिंदुस्तान राज राजेन्द्र श्री महाराजाधिराज सर सवाई महाराज सवाई मान सिंह (द्वितीय) |
![]() | रियासत | ![]() | महाराजाधिराज महारावल सर जवाहर सिंह बहादुर |
![]() | रियासत | ![]() | झालावाड़ के महाराज राणा, महाराजाधिराज महाराज राणा श्री चन्द्रजीत सिंह देव बहादुर |
![]() | रियासत | ![]() | राजराजेश्वर सरामद-ए-राजाह्-ए-हिंदुस्तान महाराजाधिराज श्री गज सिंहजी (द्वितीय) साहब बहादुर |
![]() | रियासत | ![]() | महाराजा श्री गणेश पाल देव बहादुर यदकुल चन्द्रभाल |
![]() | रियासत | ![]() | उम्दए राजहे बुलंद मकान महाराजाधिराज महाराज सुमेर सिंहजी बहादुर |
![]() | रियासत | ![]() | महाराव श्री भीम सिंह (द्वितीय) बहादुर |
![]() | रियासत | ![]() | राव हरेंद्र सिंह |
![]() | रियासत | ![]() | |
![]() | रियासत | ![]() | माहाराणा सर भूपाल सिंह |
![]() | रियासत | ![]() | राव वीर विकरम सिंह तनवर |
![]() | रियासत | ![]() | राजा अजीत प्रताप सिंह |
![]() | रियासत | ![]() | राजाधिराज सुदर्शन सिंह |
![]() | रियासत | ![]() | महाराव रघुबीर सिंह |
![]() | रियासत | ![]() | नवाब फ़ारुख़ अली ख़ान |
गुजराती राज्य एजेंसी एवं बरोडा रेसिडेंसी[संपादित करें]

बडोदा के मराठा महाराज, महामहिं सयाजीराव महाराज गयकवाड़ (तृतीय) द्वारा बनवाया वदोदरा का शानदार लक्ष्मीविलास राजमहल
बाजाना
बाकरोल-बोरू
बालासिनोर
बंसदा
बांटवामानावदार
बडोदा
भावनगर
छोटा उदयपुर
कच्छ
डंग क्षेत्र की रियासतें
दांता रायासत
देवगड्बरिया
देवनी मोरी रियासत
ध्रांगध्रा
ध्रोल
गोंडाल
हदोल
सातलासाना
मेहसाना
इडर
जामनगर
जस्दान
जव्हार
जुनागढ़
खंभात रियासत
लखतर रियासत
लिंबडी
लुनाव्दा
मालपुर
मनसा
मलिया
मियागम रियासत
मोहनपुर
मोरवी
मुली, गुजरात
नवानगर
पालनपुर
पांडू मेवास
पाटन
पोरबंदर
पोशीना
राधनपुर
राजकोट
राजपीपला
अंबलियारा रियासत
सबरकांथा एजेंसी[संपादित करें]
मध्य भारत एजेंसी के राज्यों की सूचि[संपादित करें]

मध्य प्रदेश स्थित, और्छा राजमहल
अजयगढ़
अलीपुरा
अलीराजपुर
बांका
बावनी
बरौंधा
बरवानी
बेरी
बसीडा
भैसुंदा
भोपाल
बिजावर
बिजना
बिलहेरी
चरखारी
छतरपुर
चिरगाँव
दतिया
देवास
धार
धुरवई
गौरिहार
ग्वालियर
इंदौर
जावरा
जसो
जोबत
कामता-राजुला
खनियाधाना
खिलचीपुर
कोठी
कुरवाई
मैहर
मकराइ
मोहम्मदगढ़
नागोड़
नरसिंघ्गढ़
ओर्छा
पाहड़ा
पालदेव
पन्ना
पठारी
पीपलोदा
राजगढ़
रत्लाम
रेवा
सैलाना
सीतामऊ
सोहावल
ताराओं
टोड़ी फतेहपुर
पूर्वी राज्य एजेंसी के राज्यों की वर्गित सूचि[संपादित करें]

पूर्व ताचेर रियासत का राजमहल
पूर्वी राज्य एजेंसी का गठन सन1933 में ओड़िसा, छत्तिसगढ़ और बिगाली राज्यों की एजेंसिसों के विलय द्वारा हुआ था। इसके अंतर्गयत ओड़िसा, छत्तिसगढ़ और बंगाल एजेंसियों (अर्थात पूर्वी भारत की सारी रियासतें) के सारे राज्य आते थे।
ओड़िसा राज्य एजेंसी[संपादित करें]
छत्तिसगढ़ी राज्य एजेंसी[संपादित करें]
बंगाल राज्य एजेंसी[संपादित करें]
भारत के वो राज्य जिन्हें ब्रिटिश राज ने पूरी तरह क़ब्ज़ा कर लिया था[संपादित करें]
- इन्हें भी देखें: विलय का सिद्धान्त
- अनुगुल (१८४८)
- कर्नाटक की नवाबत (१८५५)
- बांदा (१८५८)
- गुलेर (१८१३)
- जयंतिया (१८३५)
- जातिपुर (१८४९)
- जालौन (१८४०)
- जसवान (१८४९)
- झांसी (१८५४)
- कछारी (१८३०)
- कांगड़ा (१८४६)
- कन्नौर (१८१९)
- कित्तूर (१८४८)
- कोडगू (१८३४)
- कुलाबा (१८४०)
- कोष़िकोड (१८०६)
- कुल्लू (१८४६)
- कर्नूल (१८३९)
- कुट्लेहार (१८२५)
- मकराइ (१८९०–१८९३)
- नागपुर (१८५४)
- नारगुंड (१८५८)
- अवध (१८५४)
- पंजाब (१८४९)
- रामगढ़ (१८५८)
- सहारनपुर (रियासत) (१८५८)
- संबलपुर (१८४९)
- सतारा (१८४८)
- सूरत (१८४२)
- सिबा (१८४९)
- तंजावुर मराठा राज्य (१८५५)
- तुल्सीपुर (१८४९)
- उदयपुर रियासत (छत्तीसगढ़) (१८५४–१८६०)
इन्हें भ
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